बचपन की बारिश और कागज की नाव....
बचपन की बारिश और कागज की नाव....
एक समय की बात है,जब सरायपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था,वह बहुत की शुद्ध विचार और साफ सुथरे पंडित थे।शिव शुक्ला नाम के महाराज शादी और श्राद्ध कार्य किया करते थे।उनके दो बच्चे थे,बड़ा बेटा प्रताप उसी गांव के स्कूल में पढ़ने जाता था। एक बार स्कूल के अध्यापक प्रताप के स्कूल में पार्टी रखी गई। उसमें सभी बच्चों को एक साथ मिलकर खाना बनाना था! इसमें सभी वर्गो के बच्चे थे, जैसे ब्राह्मण क्षत्रिय हरिजन। शाम को 7:00 बजे पार्टी चल रही थी तभी प्रताप के पिता पंडित शिव शुक्ला वहां पहुंच जाते हैं। प्रताप बेटा अपने घर चलो, पंडित शुक्ला जी कहते हैं।
लेकिन यह सब दृश्य देखकर कोई भी अध्यापक उन्हें ऐसा करने से रोकते नहीं है । पापा मुझे वहां रहने दो मैं अपने दोस्तों के साथ पार्टी करनी है प्रताप अपने पापा से जिद करता है लेकिन शुक्ला जी प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे घर लेकर आते हैं। आप प्रताप घर आने के बाद बहुत रोता है
और बिना खाना खाए सो जाता है।
कुछ दिनों के बाद.....
कुछ दिनों बाद गांव में बहुत तेज बारिश होने लगती है चारों तरफ गलियों में पानी भर जाता है और उनका छोटा बेटा छोटू
जिद करता है और अपने पापा से कहता है, मुझे कागज की नाव बना कर दो ना।
छोटू के बहुत जिद करने के बाद, कागज की नाव बना कर देते हैं और छोटू बहुत खुश हो जाता है तब तक बारिश भी रुक गई होती है और छोटू घर से थोड़ी दूर पर पानी में कागज की नाव चलाने के लिए चला जाता है।
कागज की नाव को चलाते-चलाते छोटू का ध्यान नहीं रहता है और वह वह छोटे से गड्ढे में गिर जाता है।
छोटू जब गड्ढे में गिरता है! गांव के हरिजन परिवार के एक लड़का सोनू देख लेता है और वह दौड़ के छोटू के पास जाता है और उसे गड्ढे से निकलता है और उसे अपनी गोद में उठाकर पंडित जी के घर जाता है।
पंडित जी आपका छोटू कागज की नाव चलाते चलाते गड्ढे में गिर गया था, तो मैंने देख लिया तो मैं इसे उठाकर आपके पास ले आया, सोनू कहता है।
पंडित शिव शुक्ला सोनू का धन्यवाद करते हैं और सोनू से कहते हैं कि मैं पानी लेकर आता हूं तुम अपना शरीर को धो लो लेकिन सोनू मना कर देता है, नहीं शुक्ला जी मैं अपने घर जाके कर लूंगा। उसके बाद सोनू यह कह कर चला जाता है।
पंडित शिव शुक्ला के अंतर्मन से आवाज आती है कि जो अपने बड़े बेटे प्रताप के साथ किया था।
वह सही नहीं था, इस घटना के बाद पंडित श्री शुक्ला की सोच बदल जाती है और आगे वो किसी भी हरिजन परिवार से दूरी नहीं बनाते हैं और वह अपने बड़े बेटे को स्कूल से पार्टी करने से नहीं रोकते हैं।।
स्वरचित : अभिजीत रंजन
बलिया,उत्तरप्रदेश
16/7/2020
🤫
31-Dec-2021 11:16 AM
Nicely written
Reply
Shrishti pandey
30-Dec-2021 11:46 PM
Very nice
Reply
Sangeeta singh
30-Dec-2021 05:18 PM
Nice
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